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इ॒यम॑ददाद्रभ॒समृ॑ण॒च्युतं॒ दिवो॑दासं वध्र्य॒श्वाय॑ दा॒शुषे॑। या शश्व॑न्तमाच॒खादा॑व॒सं प॒णिं ता ते॑ दा॒त्राणि॑ तवि॒षा स॑रस्वति ॥१॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

iyam adadād rabhasam ṛṇacyutaṁ divodāsaṁ vadhryaśvāya dāśuṣe | yā śaśvantam ācakhādāvasam paṇiṁ tā te dātrāṇi taviṣā sarasvati ||

पद पाठ

इ॒यम्। अ॒द॒दा॒त्। र॒भ॒सम्। ऋ॒ण॒ऽच्युत॑म्। दिवः॑ऽदासम्। व॒ध्रि॒ऽअ॒श्वाय॑। दा॒शुषे॑। या। शश्व॑न्तम्। आ॒ऽच॒खाद॑। अ॒व॒सम्। प॒णिम्। ता। ते॒। दा॒त्राणि॑। त॒वि॒षा। स॒र॒स्व॒ति॒ ॥१॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:61» मन्त्र:1 | अष्टक:4» अध्याय:8» वर्ग:30» मन्त्र:1 | मण्डल:6» अनुवाक:5» मन्त्र:1


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब चौदह ऋचावाले एकसठवें सूक्त का आरम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में यह वाणी क्या देती है, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (सरस्वति) विदुषी (या) जो (इयम्) यह (वध्र्यश्वाय) बढ़ानेवाले घोड़ों से युक्त (दाशुषे) दानशील के लिये (रभसम्) वेग (ऋणच्युतम्) ऋण से छूटे (दिवोदासम्) विद्या प्रकाश के देनेवाले को (अददात्) देती है तथा (शश्वन्तम्) अनादि वेदविद्याविषय जो कि (अवसम्) रक्षक तथा (पणिम्) प्रशंसनीय है उसको (आचखाद) स्थिर करती है, वह (ते) आपके (तविषा) बल से (ता) उन (दात्राणि) दानों को देती है, यह जानो ॥१॥
भावार्थभाषाः - जो स्त्री विद्या शिक्षायुक्त वाणी को ग्रहण करती है, वह अनादिभूत वेदविद्या को जानने योग्य होती है, वह जिसके साथ विवाह करे, उसका अहोभाग्य होता है, यह जानने योग्य है ॥१॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथेयं वाक् किं ददातीत्याह ॥

अन्वय:

हे सरस्वति ! येयं वध्र्यश्वाय दाशुषे रभसमृणच्युतं दिवोदासमददाच्छश्वन्तमवसं पणिमाचखाद सा ते तविषा ता दात्राणि ददातीति विजानीहि ॥१॥

पदार्थान्वयभाषाः - (इयम्) (अददात्) ददाति (रभसम्) वेगम् (ऋणच्युतम्) ऋणादयुक्तम् (दिवोदासम्) विद्याप्रकाशस्य दातारम् (वध्र्यश्वाय) वध्रयो वर्धका अश्वा यस्य तस्मै (दाशुषे) दात्रे (या) (शश्वन्तम्) अनादिभूतं वेदविद्याविषयम् (आचखाद) स्थिरीकरोति (अवसम्) रक्षकम् (पणिम्) प्रशंसनीयम् (ता) तानि (ते) तव (दात्राणि) दानानि (तविषा) बलेन (सरस्वति) विदुषि ॥१॥
भावार्थभाषाः - या स्त्री विद्याशिक्षायुक्तां वाचं गृह्णाति साऽनादिभूतां वेदविद्यां वेत्तुमर्हति सा येन सह विवाहं कुर्यात्तस्याऽहोभाग्यं भवतीति विज्ञेयम् ॥१॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)

या सूक्तात वाणीच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.

भावार्थभाषाः - ज्या स्त्रीची वाणी विद्या शिक्षणयुक्त असते ती अनादिभूत वेद विद्या जाणण्यायोग्य असते. ती ज्याच्याबरोबर विवाह करते तो अत्यंत भाग्यवान असतो. ॥ १ ॥